कुछ यूं बीती आज शाम मेरा…
कुछ बाते हुई, कुछ रहा अधूरा…
जब पूछा उस चांद से मैने, क्यूं चमक निकले आज इतना तेरा…
वो चंदा भी ना बोल पाया, क्या राज है जो इतना गहरा…
कहीं धरती ये न बता रहा, वो रात गई, आ रहा सबेरा…
ये मानके में चल दिया, फिर जिंदगी की राहों में, उस काली अंधिओ से दूर, एक नए मंजिल के बाहों में…
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